तभी से सही मायने में सतयुग की कार्यशैली प्रारंभ होती है। उससे पहले वैसा होना संभव नहीं तभी से सही मायने में सतयुग की कार्यशैली प्रारंभ होती है। उससे पहले वैसा होना संभ...
सबकी अपनी-अपनी ठंड है और ठंड दूर करने के लिए सबकी अलग अपने तरीके की रजाई होती है। संसा सबकी अपनी-अपनी ठंड है और ठंड दूर करने के लिए सबकी अलग अपने तरीके की रजाई होती है...
"अरे! मैं यमराज के पास नहीं, बल्कि चाँद के पास जा रहा हूँ", अभिषेक हँसते हुए बोला। "अरे! मैं यमराज के पास नहीं, बल्कि चाँद के पास जा रहा हूँ", अभिषेक हँसते हुए बोल...
क्या पता था कि फिर कभी उससे कुछ बोल भी ना पाऊंगा। क्या पता था कि फिर कभी उससे कुछ बोल भी ना पाऊंगा।
नकाब के पीछे की आंखों में पानी और शर्म दोनों भर आया। नकाब के पीछे की आंखों में पानी और शर्म दोनों भर आया।
डरा हुआ आदमी डरा हुआ आदमी